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प्रेम गंगा




प्रेम गंगा (सजल)


प्रेम गंगा हृदय में उमड़ती रहे।

मेरे प्रीतम की आँखों में सजती रहे।।


आज होगा मिलन आसरा है यही।

दिल की चाहत स्वयं राह चुनती रहे।।।


मन दीवाना हुआ अब दरश के लिये।

प्रीति की आग अविरल  दहकती रहे।।


प्रिय मिलेगा सुनिश्चित अटल बात यह।

मन में प्रेमग्नि  नियमित दमकती रहे।।


छोड़ना है नहीं पंथ स्नेहिल सुघर।

प्रेम की भावना नित धधकती रहे।।


है विश्वास बहुलक है श्रद्धा अमित।

प्रीति की शक्ति मधुरा गमकती रहे।।


प्रीति आयेगी घर पर हृदय खोल कर।

नेह की राह हरदम चमकती रहे।।


आज प्रियतम भी व्याकुल बहुत व्यग्र है।

वृत्ति पाने की  कोशिश चहकती रहे।।


मन की कुण्ठा जलेगी मिले प्रिय अगर।

प्रेम सरिता से नीरा टपकती रहे।।


प्रीति भूली नहीं याद रखती सदा।

वह कठिन राह को पार करती रहे।।



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2 Comments

Renu

23-Jan-2023 04:54 PM

👍👍🌺

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अदिति झा

21-Jan-2023 10:37 PM

Nice 👍🏼

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